30 March 2017

Automatic Star Delta Starter

ऑटोमेटिक स्टार-डेल्टा स्टार्टर का उपयोग 5 हार्स पॉवर से अधिक क्षमता वाली मोटरों में किया जाता है। यह स्टार्टर मोटर को प्रारम्भ में स्टार से जोडता है इससे वोल्टेज कम हो जाता है तथा मोटर की गती लगभग 80% होने पर ये मोटर को डेल्टा से जोड देता है। स्टार्टर में लगे पुश बटन को दबाने से मोटर शुरू हो जाती है, तथा पुश बटन से हात हटा लेने पर मोटर कुछ समय के पश्चात स्वतः ही डेल्टा में चलने लगती है। ऑटोमेटिक स्टार-डेल्टा स्टार्टर का उपयोग लेथ मशीन, ट्यूब वैल और दूसरी कीमती मशीनों को चलाने के लिए किया जाता है।

चलिए ऑटोमेटिक स्टार-डेल्टा स्टार्टर को समझने के लिए इसका अध्ययन करें।

1) सबसे पहले एक ऑटोमेटिक स्टार-डेल्टा स्टार्टर लीजिए।
2) स्टार्टर के ऊपर लगे नेम प्लेट को पढ़ कर उसका डाटा नोट करें।
3) अब आपको स्टार्टर में लगे सभी भागों का अध्ययन करना होगा।
4) स्टार्टर का कव्हर खोलें।
5) स्टार्टर के कव्हर को खोलने के बाद अंदर आपको कनैक्शन डायग्राम दिखाई देगी। आपको कनैक्शन उसी डायग्राम के अनुसार जोडने होते हैं।
6) ऑटोमेटिक स्टार-डेल्टा स्टार्टर में ओवर लोड रिले समेत तीन कॉन्टैक्टर लगे होते हैं।
7) लाइन, स्टार और डेल्टा कॉन्टैक्टर की पहचान करें।
8) टाईमर स्विच का अध्ययन करें।
9) स्टार्ट व स्टॉप पुश बटन को टैस्ट करलें।
10) अंतः सभी भागों का अध्ययन करने के बाद स्वयं कनैक्शन डायग्राम बनाओ और उसको दिए गए चित्र के कनैक्शन से मिलाकर देखो।

याद रहे की स्टार्टर के सभी कॉन्टैक्ट साफ होने चाहिए। टाइमर स्विच को व्यवस्थित रहने दें। स्टार्टर के सभी कनैक्शन टाइट होने चाहिए। 

28 March 2017

Local and Remote control of Induction Motor

मोटर को किसी भी जगह से 'शुरू या बंद' किया जा सके; इस हेतु कारण रिमोट कन्ट्रोल पुश बटन स्टेशन बनाया जाता है। "किसी मोटर को दूर जगह से शुरू या बंद करने हेतु बनाए गए कन्ट्रोलर को रिमोट कन्ट्रोल पुश बटन स्टेशन कहतें हैं।" मोटर से लगभग थोड़ी दूरी पर रिमोट कन्ट्रोल पुश बटन लगाया जाता है। जिसमें स्टार्टर के टर्मिनल्स से निकले हुए वायर्स लगाए जाते हैं। (ये रिमोट टि.वी. या वी.सी.आर के रिमोट जैसा ईलैक्ट्रोनिक्स कॉर्डलेस नही होता।) यहाँ रिमोट कन्ट्रोल का मतलब हे "दूर से नियंत्रित करना।" रिमोट कन्ट्रोल के उपयोग से हम मोटर को दूर जगह से ही शुरू या बंद कर सकते हैं तथा मोटर की घूमने की दिशा को बदल सकते हैं। बडे-बडे कारखानों में वजन में भारी चीजों को उठाने के लिए या उनकी जगह बदलने के लिए क्रेन का उपयोग किया जाता है। इन क्रेंन्स की मोटरों को नियंत्रित करने के लिए रिमोट कन्ट्रोल पुश बटन स्टेशन बनाए जाते हैं।
हर एक रिमोट कन्ट्रोल युनिट में एक नॉर्मली क्लोज्ड पुश बटन और एक नॉर्मली ओपन पुश बटन लगाया जाता है। नॉर्मली क्लोज्ड पुश बटन एक-दूसरे के सीरीज में लगाए जाते हैं और नॉर्मली ओपन पुश बटन एक-दूसरे के पैरलल लगाए जाते हैं। ऑक्झिलरी कॉन्टैक्ट के 'K' पैरलल में और नो-वोल्ट क्वायल के सीरीज में थर्मल स्विच लगा होता है। ऑन पुश बटन दबाते ही मोटर शुरू हो जाती है और ऑफ पुश बटन दबाते ही मोटर बंद हो जाती है।
इस तरह रिमोट कन्ट्रोल का उपयोग इण्डक्शन मोटर के लिए किया जाता है।

रिमोट कन्ट्रोल :

Direct online starter (डायरेक्ट ऑन लाइन स्टार्टर)

5 हॉर्स पॉवर तक की मोटरों को स्टार्ट करने के लिए डायरेक्ट ऑन लाइन स्टार्टर का उपयोग किया जाता है। इस स्टार्टर के द्वारा मोटर को सीधा सप्लाई के साथ जोड़ते हैं। यह सप्लाई वोल्टेज को कम नहीं करता है इसलिए इसे डायरेक्ट ऑन लाइन स्टार्टर ऊर्फ डी.ओ.एल. स्टार्टर कहते हैं।

डायरेक्ट ऑन लाइन स्टार्टर के भाग :
1) हरे रंग का स्टार्ट पुश बटन : इस बटन को दबाने से मोटर स्टार्ट होती है। यह बटन स्टार्टर के कव्हर के बाहर लगा होता है।
2) लाल रंग का स्टॉप पुश बटन : इस बटन का उपयोग मोटर को बंद करने के लिए किया जाता है। यह बटन मोटर के कव्हर के बाहर लगा होता है।
3) ओवर लोड क्वायल : यह क्वायल दो धातु की पत्ती को लेकर बनाई जाती है। इसे प्रत्येक लाइन के सीरीज में जोड़ते हैं। इसके ऊपर मोटी तार और कम टर्ने लपेटी हुई होती है। अगर किसी कारण से मोटर में अधिक करंट बहने लगती है उस समय क्वायल की पत्तियाँ गर्म होकर मुड़ जाती हैं और यह एक स्विच से नो वोल्ट क्वायल का सर्किट खोल देती हैं जिससे वह अचुम्बकीय हो जाता है और सभी स्ट्रीप वापस अपनी पहली अवस्था में आ जाती है तथा मोटर में सप्लाई जानी बंद हो जाती है।
4) करंट व्यवस्थित : यह करंट को सैट करने के लिए लगाया जाता है, जिसको मोटर की करंट के अनुसार व्यवस्थित (एडजस्ट) करके सैट करते हैं।
5) धातु की पत्तियाँ : इन पत्तियों के द्वारा ही मोटर को सप्लाई पहुँचती है।

डायरेक्ट ऑन लाइन स्टार्टर के कार्य करने का सिद्धांत :
स्टार्ट पुश बटन को दबाने के बाद थर्मल रीलेद्विरा नो-वोल्ट क्वायल सप्लाय से जूड जाती है जिस कारण उसमें चुम्बकीय क्षेत्र निर्माण हो जाता है। अब चुम्बकीय क्षेत्र निर्माण होने से प्लंजर आकर्षीत हो जाता है जिस कारण मूव्हिंग कॉन्टैक्टस और स्थाई कॉन्टैक्टस एक-दूसरे से जूड जाते है तथा मोटर शुरू हो जाती है।
अब यहाँ मन में एक सवाल आता है, की स्टार्ट पुश बटन से हात हटा लेने के बावजूद मोटर शुरू रहती है, ऐसा कैसे होता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्टार्ट पुश बटन के पैरलल में एक कॉन्टैक्टर लगाया होता है जो विद्युत सप्लाय को मार्ग प्रदान करता है। अर्थात स्टार्ट पुश बटन से हात हटा लेने के बाद सप्लाय बंद हो जाना चाहिए था पर उसके पैरलल में कॉन्टैक्टर होने के कारण ऐसा नहीं हो पाता चुंकि स्टार्ट पुश बटन से हात हटा लेने के बाद करंट कॉन्टैक्टर से होकर गुजरता है और मोटर बंद होने की बजाय शुरू रहती है। स्टॉप पुश बटन को दबाने से नो-वोल्ट क्वायल से होकर गुजरने वाला करंट खंडित हो जाता है जिस कारण कॉन्टैक्टर ऑफ हो जाता है और मोटर बंद हो जाती हैं। यह डायरेक्ट ऑन लाइन स्टार्टर के कार्य करने का तरीका है।

डायरेक्ट ऑन लाइन स्टार्टर :


 कन्ट्रोल सर्किट :


26 March 2017

How to repair cooler? (कुलर के दोष एवं निवारण)

कुलर का उपयोग जादा तर गर्मी के दिनो में किया जाता है। यह कई आकार में उपलब्ध है। जैसे कि किट एवं पम्प, एग्जॉस्ट एवं पम्प, इनसाइड कुलर, आउटसाइड कुलर आदि।

कुलर के दोष एवं निवारण :

दोष : कुलर चल नही रहा। (मोटर स्टार्ट नहीं होती है।)
निवारण :
1) सप्लाई चैक करें।
2) स्विच और रेगूलेटर को भी चैक करें। स्विच और रेगूलेटर में सप्लाई आ रही हे या नहीं देखें। खराब होने पर बदल दें।
3) स्टेटर के साथ रोटर जाम होगा, चैक करें अगर ऐसा हे तो बैयरिंग चैक करें, बैयरिंग को ग्रीस दें या बदल दें।
4) मोटर वाइंडिंग चैक करें। अगर वाइंडिंग जल गई हे तो मोटर को रिवाइन्ड करना होगा।
5) तारों में ओपन सर्किट कि जाँच करें। तारों को चैक करें, तथा बदल दें।

दोष : पम्प कार्य नहीं कर रहा।
निवारण :
1) इम्पैलर चैक करें। खराब होने पर बदल दें।
2) पाईप चैक करें। पाईप के सिरों को साफ करें।

दोष : कुलर शॉक दे रहा है।
निवारण :
फेज तार कुलर के बॉडी में लग रही है तथा बॉडी के अर्थ न होने के कारण ऐसा हो रहा है। बॉडी अर्थ करें तथा फेज वायर को बॉडी से अलग करें।

जरूरी सूचना : याद रखें कुलर को अर्थ करना बहुत जरूरी है। इससे कुलर में आया करन्ट अर्थ के जरिए जमिन में चला जाता है। ईसके लिए आपके घर में अर्थिंग का होना जरूरी है।

अर्थिंग से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए निचे दिए गए पर्याय को चुने :

दोष : कुलर का पंखा उल्टा घूम रहा है। अर्थात विपरीत दिशा में घूम रहा है।
निवारण : कनैक्शन गलत हो गए हैं। घूमने की दिशा चैक करें, गलत होने पर कनैक्शन ठीक करें।

चित्र में कुलर की सर्किट डायग्राम दी गई है। कुलर का कनैक्शन दी गई सर्किट डायग्राम के अनूसार करें। 

25 March 2017

Ceiling fan faults and repairing ( पंखे के दोष एवं निवारण)

छत पर लगने वाले पंखे को आप घर बैठे ठिक कर सकते हैं। लेकीन इसके लिए आपको कुच्छ सावधानियाँ बरतनी होगी। इसलिए बहेतर यही होगा की आप किसी मान्यता प्राप्त इलैक्ट्रिशियन की मदत लें।

सबसे पहले पंखे को अच्छी तरह देखें, इसके साथ ही रेगुलेटर और स्विच का भी निरीक्षण करें । अगर निरीक्षण के समय कोई दोष पता लगे, जैसै ढीले ब्लेड या नट बोल्ट तब आगे टैस्ट करने से पहले इनको ठीक कर लें । पंखे को ऑन करके रेगुलेटर की अलग-अलग रेटिंग पर इसके कार्य की जाँच करें ।

पंखे की वायरिंग डायग्राम :-

पंखे के दोष एवं निवारण :

दोष : पंखा चालू नही हो रहा?
निवारण : 1) सप्लाय चैक करें। कनैक्शन सही जगह लगें है या नही देखें। कनैक्शन को चैक करके कस दें।
2) अगर पंखे तक सप्लाय नही जा पा रही है तो स्विच को चैक करें।
3) स्विच खराब हो गया हो तो बदल दें।
4) स्विच ठिक से कार्य कर रहा हो तो रेगुलेटर को चैक करें।
5) रेगुलेटर की कन्टीन्यूटि मल्टिमीटर द्वारा या टेस्ट लैंप द्वारा चैक करें। रेगुलेटर खराब होने पर उसे बदल दें।
6) पंखे को हाथ से घुमाकर देखें अगर पंखा सख्त चल रहा है, तब बियरिंग खराब है। उसे बदल दें।
7) हो सकता है की वाइंडिंग जल गई हो, वाइंडिंग को कन्टीन्यूटि से चैक करें। अगर वाइंडिंग कन्टीन्यूटि नही दिखा रही तो मोटर वाइंडिंग दोबारा करनी होगी।

दोष : पहले हाथ से घुमाने पर पंखा घुमता है। स्पीड कम।
निवारण : कैपेसिटर को चैक करें। खराब होने पर बदल दें।

दोष : चलते समय पंखा शोर कर रहा है।
निवारण : पंखे को लुब्रीकेशन की जरूरत है।

दोष : पंखा झटके खाकर चलता है, इसको Wobbling कहते हैं।
निवारण : 1) Shackle फिटिंग ढीली होगी चैक करें। Shackle क्लैम्प बोल्ट नट स्पलिट पिन चैक करके दोषी पाने पर बदल लें।
2) पंखे की ब्लेड का बैलेंस बिगड़ गया है। फिटिंग को चैक करें स्क्रूको कसे और अगर मौलिक ब्लैड्स को अधिक नुकसान हो गया है जो सुधारा नहीं जा सकता, तब ब्लैड्स को बदलें।

22 March 2017

AC Motor ( ए.सी. विद्युत मोटर )

ऐसे उपकरण जो विद्युतीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलकर उससे दूसरी मशीनों को चलाते हों, विद्युत मोटर कहलाते है।

विद्युत मोटर के कार्य करने का सिद्धांत :
एक शाफ्ट पर लगी हुई क्वायल को जब एक परिवर्तनशील चुम्बकीय क्षेत्र मे रखा जाता है तो इण्डक्शन (या प्रेरण ) के प्रभाव से उस क्वायल में एक करन्ट का प्रवाह होने लगता है। अब इस करन्ट के कारण क्वायल के चारो ओर एक और चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार यहां पर दो चुम्बकीय क्षेत्र बन जाते है। इन दोनों चुम्बकीय क्षेत्र के आपस में टकराने से क्वायल पर एक बल लगने लगता है, जिसके कारण इस क्वायल से जुड़ा हुआ शाफ्ट घुमने लगता है। यही A.C. मोटर अर्थात् विद्युत मोटर के कार्य करने का आधारभूत सिध्दांत है।
यही कारण है कि सामान्य रूप से कहा जाता है कि A.C. मोटर, (विद्युत मोटर) इण्डक्शन (प्रेरण) के सिद्धांत पर कार्य करती है।
A.C. मोटर के विभिन्न भाग :
किसी भी A.C. मोटर या इण्डक्शन मोटर के तीन मुख्य भाग निम्नलिखित है -
1) रोटर 2) स्टेटर 3) योक (बाडी या फ्रेम)

रोटर :-
'रोटर' का शाब्दिक अर्थ होता है - घुमने वाला भागा अत: नाम से ही स्पष्ट है कि रोटर, मोटर का घुमने वाला भाग होता है। किसी भी मोटर में लगने वाले रोटर की संरचना (बनावट) उस मोटर विशेष के प्रकार पर निर्भर करती है। रोटर सामान्यत बेलनाकार आकृति का होता है जिस पर एक शाफ्ट लगा हुआ होता है।
कुछ मोटर्स के रोटर लेमिनेटेड पत्तियों को रिबिट करके बनाये गये हैं तथा ये पत्तियां एक शाफ्ट से जुड़ी हुई होती है। इसमें शाफ्ट के समानान्तर गोलाकार रूप में बहुत सारे स्लॉट्स बनाये गये होते है। प्रत्येक स्लॉट में तांबे की एक छड़ रख दी जाती है तथा इसे हाईड्रोलिक प्रेशर से दबा दिया जाता है। इस प्रकार लगाई गई सभी छड़ों को आपस मे दोनो सिरों पर एण्ड रिंग्स के द्वारा जोड़ दिया जाता है।
रोटर को किसी भी प्रकार की सप्लाई नहीं दी जाती है, यह पूर्णतः इण्डक्शन के सिध्दांत पर कार्य करता है। इस प्रकार के रोटर, स्कुअर्ल केज रोटर कहलाते हैं तथा जिन मोटरों में इस प्रकार के रोटर लगे होते हैं उन्हें स्कृअर्ल केज इण्डक्शन मोटर कहते हैं।
स्कुअर्ल केज रोटर के अलावाभी कई मोटर्स के घूमने वाले भाग के रूप में आर्मेचर का उपयोग किया जाता है। इस आर्मेचर पर एक कोर होती है, जिसे आर्मेचर कोर कहा जाता है। आर्मेचर कोर के बीच में एक लोहे का शाफ्ट लगाया जाता है। आर्मेचर कोर की सतह पर बहुत सारे स्लॉट्स बने हुये होते हैं। इन स्लॉट्स पर इन्सुलेटेड कापर वायर से बनायी गई क्वायलें लगाई जाती है। अब इनके उपर बांस की पतली-पतली पट्टियां लगाकर स्लॉट्स को बंद कर दिया जाता है। इन क्वायलों को इसी आर्मेचर पर बने विभिन्न सेग्मेन्ट्स के द्वारा सप्लाई प्राप्त होती है।

स्टेटर:-
नाम से ही स्पष्ट है कि यह मोटर का स्थिर भाग होता है। स्टेटर, लेमिनेटेड पत्तियों को आपस में जोडकर बनाया जाता है। स्टेटर पर बहुत सारे खांचे या स्लॉट्स बने हुये होते हैं। इन स्लॉट्स पर तांबे के इन्सुलेटेड तार की क्वायल (वाईण्डिंग्स) बनाई जाती है। अलग-अलग मोटर्स के स्टेटर में वाईण्डिंग्स की संख्या भी भिन्न- भिन्न होती है I हम वाईण्डिंग्स को इस प्रकार जोड़ा गया होता है कि ये एक रोटेटिंग (घूमता हुआ) मेग्नेटिक फिल्ड तैयार करें। जब इन क्वायल्स को AC सप्लाई दी जाती है तो इनके चारों ओर विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र बन जाता है। स्टेटर के बीच में रोटर लगा हुआ होता है जो स्टेटर में उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र के कारण घूमने लगता है।
आजकल लगभग 90% इण्डक्शन मोटर्स इसी प्रकार की बनाई जाती है।

योक (बॉडी या फ्रेम)
योक, मोटर का वह भाग होता है, जिस पर स्टेटर वाईण्डिंग लगी हुई होती है। मोटर का रोटर भी इसी भाग मे लगाया जाता है। छोटी साईज की मोटर्स के लिये यह ढले हुये अर्थात् कास्ट आयरन का बना हुआ होता है। जबकि बड़ी साईज की मोटर्स के लिये यह स्टील की प्लेटों से फ्रेबीकेट (कटिंग-वेल्डिग) करके बनाया जाता है। इसके नीचे के भाग मे एक स्टेण्ड होता है, जिसकी सहायता से मोटर को किसी आधार पर नट-बोल्ट के द्वारा कस दिया जाता है। मोटर की बॉडी पर बाहर की तरफ कुछ खाड़ी-आड़ी प्लेटें लगी हुई होती हैं। ये प्लेटें मोटर के लिये हीट सिंक का कार्य करती हैं।

19 March 2017

Electricity bill/bijlee ka bill

घरों में खपत की जाने वाली बिजली का बिल किस आधार पर आता है?

घरों में खपत की जाने वाली बिजली के मापन के लिये विद्युत मण्डल द्वारा घरों में एक मीटर लगाया जाता है। इस मीटर की रिडिंग, प्रतिमाह, बिजली विभाग कर्मचारियों द्वारा की जाती है। इसी रीडिंग के आधार पर ही विद्युत मण्डल हमें बिजली का बिल भेजती है।
विद्युत की खपत को नापने के लिये घरों में लगाये जाने वाले मीटर को 'वॉट-अवर' मीटर कहा जाता है।
विद्युत की खपत को दो विधियों से मापा जाता है -

वॉट अवर (WATT-HOUR OR WH)
पावर (अर्थात् वॉट) तथा समय (घण्टों में) के गुणनफल को ही वॉट-अवर कहा जाता है। अर्थात्
वॉट अवर = पावर ( विद्युत खपत वॉट में ) x समय ( घण्टों में )
Wh = W x H

अर्थात् यदि 10 वॉट विद्युत शक्ति का १ घंटे तक उपयोग किया जा रहा हो तो उसका वॉट अवर 10Wh होगा।
किलो वॉट अवर या KWH (KILO WATT HOUR) विद्युत व्यय को नापने की वॉट अवर (Wh) से बडी ईकाई (KWh) कहलाती है।
1000 Wh (वॉट अवर) = 1 किलो वॉट अवर (KWh)
इसी 1 किलो वॉट अवर को ही विद्युत मण्डल 1 युनिट विद्युत व्यय मानता है एवं इसी युनिट के आधार पर ही हमें बिजली का बिल प्राप्त होता है। बिजली के बिल में हमसे प्रति युनिट की दर से विद्युत व्यय लिया जाता है। प्रति युनिट विद्युत व्यय के लिये राशि विद्युत मण्डल द्वारा निर्धारित की जाती है।

उदाहरण : एक मकान में बिजली का उपयोग निम्न प्रकार से हो रहा है - इस आधार पर 30 दिनों में आने वाले खर्चे की गणना करें -
मानलिजिए की आप घर में,
1) एक टूयुब लाईट 40 वाट - प्रतिदिन 5 घंटे
2) एक पंखा 60 वाट - प्रतिदिन 8 घंटे
3) बिजली का प्रेस 750 वॉट - प्रतिदिन 1 घंटा
उपयोग करतें हैं।
तो उपरोक्त प्रकार से प्रतिदिन होने वाला विद्युत व्यय-
= (40 वॉट x 5) + (60 वॉट x 8) + (750 वॉट x 1)
= 200 + 480 + 750
= 1430 वॉट अवर
इस तरह एक दिन में कुल 1430 वॉट अवर (Wh) विद्युत का व्यय होता है। अत: 30 दिनों में हो वाला कुल विद्युत व्यय
= 1430 x 30
= 42,900 वॉट अवर
अतः तीस दिनों में कुल 42,900 वॉट अवर विद्युत का व्यय किया जाता है। अब वॉट अवर ईकाई को किलो वॉट अवर ईकाई में बदलने पर
चुंकि 1000 वॉट अवर = 1 किलो वॉट अवर
42,900 वॉट अवर = (1/1000) x (42 900/1)
= 42.9 किलो वॉट अवर
इस प्रकार 30 दिनों में कुल 42.9 KWh या 42.9 युनिट विद्युत व्यय होगी।
अब चुंकि घरेलु विद्युत उपयोग के लिये, विद्युत मण्डल द्वारा 3 रूपया/युनिट लिया जाता है, अतः 42.9 युनिट के लिये लिया जाने वाला खर्चा
= 42.9 x 3
= 128.7 रूपये
अर्थात् इतनी बिजली का व्यय करने पर विद्युत मण्डल आपको 128.70 रू /प्रतिमाह बिजली खर्च का बिल भेजेगा।

10 March 2017

Safety rules for electricians

बिजली का काम करते समय I.S. 5216 अनुसार सामान्य सावधानियों का विवरण निम्न प्रकार है :-

1) वर्कशॉप के अंदर ढीले कपड़े जैसे धोती, कुर्त्ता, पायजामा इत्यादि पहनकर बिजली तथा मशीन के ऊपर काम नहीं करना चाहिए l
2) बिजली के झटके से आसानी से बचा जा सकता है । थोड़ी-सी असावधानी से बिजली हानि दे सकती है ।
3) नंगे पैर काम न करें, यदि रबड़ के जूते पहनकर काम करें तो अच्छा है ।
4) यदि कोई व्यक्ति बिजली की तार से चिपक गया है और यदि स्विच पास में नहीं है तब उस समय उस तार को किसी इंसूलेटिड प्लायर से काट दें । यदि स्विच पास है तो ऑफ (Off) कर दें l
5) टावर या पोल पर काम करते समय सुरक्षा बेल्ट (Safety belt) का उपयोग करना चाहिए I
6) जब सीढ़ी (Ladder) का प्रयोग करें तो एक सहायक अवश्य रखे जिससे सीढ़ी को फिसलने से रोका जा सके और औजारों आदि तथा बिजली का सामान भी सहायक को पकड़ा सके ।
7) हमेशा स्विच में फेज वायर या पॉजिटिव को कंट्रोल करना चाहिए।
8) किसी भी लाइन को सप्लाई के साथ जोड़ने से पहले यह देख लेना चाहिए कि कोई अन्य व्यक्ति उस लाइन पर काम तो नहीं कर रहा है I
9) फ्यूज वायर को लगाने से पहले स्विच को बंद कर देना चाहिए।
10) टेबल फैन या portable appliances को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने से पहले उसे सप्लाई से अलग कर देना चाहिए।
11) Flexible Wire को खींचकर कभी प्लग प्वाइंट से अलग नहीं करना चाहिए।
12) किसी भी कन्डक्टर में सप्लाई उस समय तक नहीं देनी चाहिए जब तक यह विश्वास नहीं हो जाए कि वह बिल्कुल ठीक है और वहाँ पर कोई व्यक्ति काम नहीं कर रहा है ।
13) किसी भी इलैक्ट्रिक इंस्टॉलेशन को बिना आवश्यकता के नहीं छूना चाहिए।
14) जब कभी बैट्री को चार्ज करना हो तो उस समय उस कमरे की सभी खिडकियाँ (Windows) खोल देनी चाहिए, कभी भी बंद कमरे में बैट्री को चार्ज नहीं करना चाहिए l
15) इलेक्ट्रोलाइट तैयार करते समय एसिड (तेजाब) को पानी में डाले, न कि पानी को तेजाब में ।
16) आग लग जाने पर चालू लाइन (Live conductor) और बिजली के उपकरण (Electrical equipment) पर पानी न फेंके ऐसा करना खतरनाक (Dangerous) है l अच्छा उपाय यह है कि शीघ्र ही सप्लाई बंद कर दी जाए या मैन स्विच पास में नही है, तो रेत (sand) या आग बुझाने वाले यंत्र (C.T.C.) से आग बुझानी चाहिए।
17) हमेशा Earth conductor संतोषजनक होना चाहिए क्योंकि सुरक्षा अच्छी अर्थ चालक पर ही निर्भर करती है।
18) जब तक विश्वास न हो जाए कि ओवर हैड लाइन बंद (Over head line dead) है अथवा अच्छी तरह से अर्थ है, तब तक लाइन को नहीं छूना चाहिए।
19) किसी इलैक्ट्रिकल इंसटॉलेशन के स्विच गियर के साथ छेड़-छाड़ न करें, ये यंत्र आपकी सुरक्षा के लिए हैं।
20) बिजली की वैल्डिंग की तरफ बिना उचित चश्मा पहने नहीं देखना चाहिए।
21) बिजली का काम हमेशा मान्यता प्राप्त कुशल कारीगर से ही कराना चाहिए।
22) वर्कशॉप में धूम्रपान नहीं करना चाहिए।
23) वर्कशॉप में तेल या फिसलने वाली वस्तु फर्श में नहीं बिखरी होनी चाहिए।

Note:- हमेशा सावधानी से काम करें ताकि दुर्घटनाओं को टाला जा सकें।

इलैक्ट्रोन थ्योरी (Electron Theory)

पदार्थ के प्रत्येक परमाणु के मध्य विद्युत स्थित रहती है जो प्रोटोन और इलैक्ट्रोन्स के रूप में होती है। इनके विपरीत चार्ज, एक दूसरे को निष्प्रभावित करते रहते हैं इस कारण इसमें उपस्थित विद्युत प्राप्त नहीं होती है । परमाणु में इलैेक्ट्रोन्स और प्रोटोन्स दृढ़ता पूर्वक बंधे हुए होते हैं जो एक दूसरे से पृथक नहीं हाते हैं। परन्तु जब बाह्य ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में दी जाती है तो इलैक्ट्रोन्स की संख्या में परिवर्तन हो जाता है । यह परिवर्तन इलैक्ट्रोन्स की संख्या में कमी होने अथवा अधिक होने से होता है। जब इलैक्ट्रोन्स की संख्या कम हो जाती है तो प्रोटोन्स की संख्या अधिक रहती है और पॉजिटिव चार्ज अधिक हो जाता है तथा पॉजिटिव विद्युत प्राप्त होती है। परन्तु जब इलैक्टोन्स की संख्या प्रोटोन्स से अधिक हो जाती है तो उसमें नेगेटिव चार्ज अधिक हो जाता है और उससे नेगेटिव विद्युत प्राप्त हो जाती है।

इलैक्ट्रोन्स प्रोटोन्स के चारों ओर अधिक वेग से घूमते हैं। इलैक्ट्रोन का नेगेटिव चार्ज दिखाई नहीं देता है परन्तु प्रत्येक पदार्थ में समान रूप से पाया जाता है। चालकों (Conductors) में इलैक्टोन्स की कुछ संख्या परमाणु से परमाणु की ओर स्वतन्त्रता पूर्वक गुजरती है जबकि चालक के सिरों के आर-पार विभव (Potential) का अन्तर से प्रभावित होती है। इन इलैक्ट्रोन्स के घूमने से इलैक्ट्रिक करन्ट प्रवाहित होने लगती है। यद्यपि इलैक्ट्रोन्स नेगेटिव चार्ज युक्त होते हैं फिर भी इनके घूमने की दिशा बहने वाली करन्ट के विपरीत दिशा में होती है। करन्ट बाहरी सर्किट में पॉजिटिव से नेगेटिव की ओर प्रवाहित हो जाती है । कुचालक (Non-conductor or Insulator) पदार्थ में विद्युत करन्ट प्रवाहित नहीं होती है क्योंकि उसमें इलैक्ट्रोन्स, न्यूक्लियस से दृढ़ता पूर्वक बंधे होते हैं। इलैक्ट्रोन्स को परमाणु से हटाना अधिक कठिन होता है।

9 March 2017

Magnetism and their properties in Hindi

चुम्बकत्व (Magnetism) :-

एशिया के मैगनेशिया नामक स्थान पर एक भूरे रंग का पत्थर मिलता हैं जिसे लोड स्टोन (Loadstone) कहते हैं I इस पत्थर के समीप यदि कोई लोहे की वस्तु ले जाई जाती है तो वह उस वस्तु को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। इस पत्थर को मैगनेटाइट (magnetite) कहते हैं, इससे ही चुम्बक (magnet) प्राप्त होता है। चुम्बक के आकर्षण के प्रभाव को चुम्बकत्व (magnetism) कहा जाता है। यदि इसे किसी आयरन या स्टील के साथ रगड़ा जाए तो उसमें भी कुछ चुम्बक के गुण आ जाते हैं जो लोहे के बुरादे को अपनी और आकर्षित कर लेते हैं। परन्तु यह गुण उसमें विद्यमान नहीं होते हैं और नष्ट हो जाते हैं। चुम्बक के गुण लोहे की कठोरता के अनुसार उत्पन्न होते हैं। यदि लोह को पत्थर के साथ काफी समय तक रगड़ा जाए तो उसमें चुम्बकीय गुण स्थाई रूप से आ जाते हैं। ऐसे लोहे या स्टील के टुकड़े को स्थाई चुम्बक (permanent magnet) कहते हैं I
यदि इस टुकड़े को वायु में लटका दें तो उसका एक सिरा उत्तर दिशा में और दूसरा सिरा दक्षिण दिशा में रहता है। जो सिरा उत्तर दिशा में रहता है वह इस चुम्बक का उत्तरी ध्रुव (north pole) और जो सिरा दक्षिण दिशा में रहता है वह दक्षिणी ध्रुव (south pole) कहलाता है।

चुम्बक के गुण (Properties of Magnetism) :-

1) प्रत्येक चुम्बक में दो ध्रुव होते हैं एक उत्तर तथा दूसरा दक्षिण ।
2) चुम्बक, चुम्बकीय पदार्थों को आकर्षित करता है।
3) समान ध्रुव एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं तथा असमान ध्रुव एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं ।
4) चुम्बक को गर्म करने, पीटने से इसका चुम्बकत्व नष्ट हो जाता है ।
5) चुम्बक को कई भागों में तोड़ने पर प्रत्येक भाग चुम्बक बन जाता है जिसके दो ध्रुव होते हैं ।

Oscilloscope Practical in Hindi

उद्देश्य (Aim) :- ऑस्कीलोस्कोप यंत्र का अध्ययन करना।

ऑस्कीलोस्कोप में निम्नलिखित मुख्य कन्ट्रोल होते हैं :
1) on - off स्विच : सप्लाई को on - off करने के काम आता है ।
2) फोक्स कन्ट्रोल : केथोड-रे-टूयूब पर ट्रेस को तीखा करने के काम आता है ।
3) ब्राइटनैस कन्ट्रोल : यह सी.आर.टी. की चमक घटाने बढ़ाने के काम आता है ।
4) वर्टीकल एवं हॉरिजैन्टल कन्ट्रोल : स्क्रीन पर वेव को ऊपर नीचे एडजस्ट करने के काम आता है ।
5) स्वीप स्लैवटर : यह विभिन्न फ्रिक्वैंसी पर वेव फार्म देखने के लिए आस्कीलोस्कोप को सैट करने के काम आता है ।
6) सिंक स्लैक्टर : यह इनपुट कन्ट्रोल को सिन्क्रोनाइज करने के काम आता है ।
7) वर्टीकल गैन स्लैक्टर : यह वेव फार्म की ऊचाई को एडजस्ट करने के काम आता हैँ ।
8) हॉरिजैन्टल गैन स्लैक्टर : यह वेव फार्म की चौड़ाई सैट करने के काम आता है ।
9) सिंक : वेव फार्म को स्थिर अवस्था में रखने के लिए अर्थात ड्रिफ्ट को कम करने के काम आती है ।

मैन्युअल निर्देश :-
1) ब्राइट नैस तथा फोक्स को रैंज के मध्य रखें ।
2) सिंक स्लैक्टर को आई.एन.टी. पर सैट करें ।
3) सिंक को एकदम बन्द रखें ।
4) स्वीप का स्विच ऑन करने के बाद दो-तीन मिनट यंत्र को गर्म होने दें ।
5) वेव फार्म देखने के लिए यंत्र के वर्टीक्ल इनपुट को ए.सी. सिग्नल स्त्रोत से जोड़े ।
6) वेव की सही पिक्चर के लिए वर्टीकल गैन स्लैक्टर को एडजस्ट करें ।

सावधानियाँ (Precautions) :-
1) स्क्रीन पर स्थिर बिन्दु को अधिक समय तक नहीं रहने देना चाहिए ।
2) सी.आर.टी. को अधिक ब्राइट नहीं करना चहिए ।

Mercury vapour lamp in Hindi

एम.वी. टाइप लैम्प :-

इसका पूरा नाम मरकरी वेपर लैम्प है। इस लैम्प में दो मुख्य इलैवट्रॉड और एक स्टार्टिग' इलैवट्रोड लगा होता है। मुख्य इलैक्ट्रोड और स्टार्टिंग इलैक्ट्रोड के मध्य एक हाई रेसिस्टेन्स लगा होता है। मरकरी ट्यूब लम्बी होती है और क्वार्ट्ज काँच (quartz glass) की बनी होती है। इसकी कैप वायनेट टाइप होती है और कैप पर तीन पिन निकली होती है। बाहर की ओर सिरीज में चोक और पैरलल में कैपेसिटर लगा होता है।
इस लैम्प की कार्यविधि एम.ए. टाइप लैम्प की भाँति होती है। इस लैम्प को लटकाना आवश्यक नहीं है। इसे किसी भी प्रकार से प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि इसकी ट्यूब आर्क का ऊष्मा सहन करने के योग्य होती है। यह अधिक प्रैशर पर कार्य करता है। यह 80 और 125 वॉट के बनाए जाते हैं। इसकी एफीसियेन्सी लगभग 32 ल्युमेन प्रति वॉट होती है। इसमें लगने वाला कैपेसिटर लगभग 10 मा.फै. का होता है। इसका प्रकाश नीला सफेद होता है। यह चौराहों (Four ways road) पर, शादी, उत्सव, रेलवे लाइन, फैक्टरी आदि पर अधिक प्रकाश के लिए प्रयोग किया जाता है।

5 March 2017

डी.सी. मशीन में दोष तथा उनके कारण (Faults in D.C. Machine and their Causes)

(1) दोष (Fault) :- कार्बन-ब्रुश के नीचे चिनगारियाँ उत्पन्न होना।

सम्भावी कारण (Possible Causes) - इसके निम्न कारण सम्भव हैं -

(a) ब्रुश का उदासीन अक्ष (Neutral axis) पर न होना I
(b) कार्बन ब्रुश, अनुपयुक्त ग्रेड का होना।
(c) सम्पर्क प्रतिरोध (Contact resistance) का कम होना।
(d) ब्रुश-होल्डर का टेढ़ा अर्थात् तिरछा लगा होना ।
(e) ब्रुश की सतह का कम्युटेटर की सतह से पूर्ण रूपेण स्पर्श न काना ।
(f) स्प्रिंग द्वारा ब्रुश पर अधिक दाब डाला जाना।
(g) कम्युटेटर की सतह पर ब्रुश का उछल-कूद (Jump) करना।
(h) मशीन का अति भारित (Over loaded) होना l
(i) कम्युटेटर पर गंदगी व कार्बन का जमा होना ।
(j) कार्बन ब्रुश का अति खराब होना।

(2) दोष (Fault) :- मोटर को स्टार्टर करते ही फ्यूज का उड़ जाना।

सम्भावी कारण (Possible Causes) - इस दोष के निम्न कारण सम्भव हैं -

(a) मोटर के स्टार्टर का ऑन (on) स्थिति में रह जाना।
(b) स्टार्टर के प्रतिरोध को तेजी के साथ कट (कम) करना।
(c) मोटर के स्टार्टर में दोष का होना।
(d) परिपथ में लघुपथ दोष का होना।

(3) दोष (Fault) :- मोटर धीमी गति से घूमना।

सम्भावी कारण (Possible Causes) - इस दोष के निम्न कारण सम्भव हैं -

(a) स्टार्टर के रजिस्टेन्स का आर्मेचर सर्किट में पूर्णरूपेण कट (पृथक) न होना ।
(b) आर्मेचर सर्किट में लघुपथ दोष (s.c.f) का होना।

(4) दोष (Fault) :- मोटर की गति का अत्यधिक बढ़ जाना ।

सम्भावी कारण (Possible Causes) - इस दोष के निम्न कारण सम्भव हैं -

(a) प्रदाय वोल्टता (Supply Voltage) का बढ़ जाना।
(b) शंट फील्ड वाइंडिंग के किसी संयोजन का खुल जाना।
(c) कम्पाउन्ड मोटर में शंट तथा सिरीज फील्ड वाइंडिंग (कॉइल्स) का एक-दूसरे के विरोध में कार्य करणा अर्थात् डिफ्रेंशियल कम्पाउन्ड मोटर की तरह से कार्य करना ।

(5) दोष (Fault) :- मोटर का विपरीत दिशा में घूमना।

सम्भावी कारण (Possible Causes) - इस प्रदोष के निम्न कारण सम्भव हैं -

आर्मेचर अथवा फील्ड दोनों में से किसी एक के संयोजनों का गलत हो जाना। इसलिए संयोजन को सही करिए।

Classification of D.C. Motors (डी.सी.मोटरों का वर्गीकरण)

1) सीरीज मोटर :- इस मोटर की फील्ड वाइंडिंग आर्मेचर के सीरीज में कनैक्ट की जाती है। फील्ड वाइंडिंग, कम टर्न और मोटे तार की होती है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। इस मोटर को कभी बिना लोड के नहीं चलाया जाता है क्योंकि शून्य लोड पर स्पीड क्सी अधिक होती है। लोड बढ़ाते रहने पर इसकी स्पीड कम होती जाती है। इसलिए यह ऐसे स्थान पर प्रयोग की जाती है जहाँ हर समय लोड लगा रहता है।

2) शन्ट मोटर :- इस मोटर की फील्ड वाइंडिंग आर्मेचर के समानान्तर क्रम में लगी होती है। फील्ड वाइंडिंग में टर्नों की संख्या अधिक और तार बारीक होते है I इसके फील्ड की रेसिस्टेंस अधिक होती है। इस मोटर की स्पीड लगभग स्थिर रहती है चाहे इस पर लोड रहे या न रहे। यह मोटर अधिक लोड पर स्टार्ट नहीं की जाती है। यह ऐसे स्थान पर उपयोग की जाती है जहाँ पर लोड एक समान रहता है।

3) कम्पाउन्ड मोटर :- जिस मोटर में फिल्ड वाइंडिंग एक भाग, आर्मेचर के सिरीज में और दूसरा भाग, आर्मेचर के शंट में कनैक्ट हो वह कम्पाउन्ड मोटर कहलाती है। यह दो प्रकार की होती हैं।
1) क्युम्युलेटिव कम्पाउन्ड मोटर (Cumulative Compound Motor) 
2) डिफरैन्शियल कम्पाउन्ड मोटर (Differential Compound Motor)
1) क्युम्युलेटिव कम्पाउन्ड मोटर :-
इसमें सिरीज वाइंडिंग में उत्पन्न फ्लक्स तथा शन्ट वाइंडिंग में उत्पन्न फ्लक्स दोनों एक-दूसरे की साहायता करते हैं जैसा चित्र में दर्शाया गया है। यह दो प्रकार की होती है :-
a) शॉर्ट शंट टाईप (short shunt type)
b) लाँग शंट टाईप ( long shunt type)

2) डिफ्रैन्शियल कम्पाउन्ड मोटर :-
इस मोटर में सीरीज वाइंडिंग शन्ट वाइंडिंग का विरोध करती है। इस कारण सिरीज-वाइंडिंग शन्ट-वाइंडिंग के विपरीत लगी होती है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है । इस मोटर को स्टार्ट करने से पहले सीरीज-फील्ड को शार्ट-सर्किट कर दिया जाता है जिससे मोटर शंट-वाइंडिंग पर स्थिर गति से चलती रहती है। अधिक लोड होने पर सिरीज-फील्ड प्रयोग किया जाता है। इसका उपयोग बहुत कम होता है।  

Back E.M.F., Torque and shaft torque in Hindi

डी.सी. मोटर में बैक ई.एम.एफ. :- जब आर्मेचर चुम्बकीय पोलोंके मध्य घूमता है तो वह चुम्बकीय रेखाओं को काटता है और जनरेटर की भाँति आर्मेचर में ई.एम.एफ. (E.M.F.) उत्पन्न हो जाता है। यह ई.एम.एफ. आर्मेचर में प्रयुक्त वोल्टेज के विपरीत होता है। इसलिए इसे बैक ई.एम.एफ. कहते हैं। इसे निम्न द्वारा ज्ञात किया जाता है ।

यहाँ पर,
V = Eb + Ia.Ra
V = प्रयुक्त वोल्टेज (Applied voltage)
Eb = बैक E.M.F
Ra = आर्मेचर का प्रतिरोध
Ia.Ra = आर्मेचर में वोल्टेज ड्रॉप (Voltage drop)
Eb = V - Ia.Ra

टॉर्क (Torque) :- वह बल जो कन्डक्टर को अपने अक्ष के चारो ओर घुमाता है अथवा घुमाने का प्रयत्न करता है, घुमाव बल या बलघूर्ण या टॉर्क (torque) कहलाता है I

बलघूर्ण = बल × दूरी

T = Eb.Ia/2πN न्यूटन मीटर
T = टॉर्क
Eb = बैक E.M.F.
Ia = आर्मेचर धारा
N = आर्मेचर की घूर्णन गति

शॉफ्ट टॉर्क :- मोटर की शॉपट पर उपयोगी कार्य होता है इसे ही शॉफ्ट टॉर्क (shaft torque) कहते है। शॉफ्ट पर प्राप्त उपयोगी पावर ब्रेक हार्स पावर (brake horse power) में ज्ञात की जाती है। संक्षेप में इसे बी.एच.पी. (B.H.P.) कहते हैं।
शॉफ्ट टॉर्क = आउटपुट पॉवर x 60/2πn  न्यूटन मीटर

उदाहरण :- 230 वोल्ट पर 20 एम्पियर्स की आपूर्ति प्राप्त करने के लिये जनरेटर को चलाने के लिये कितने हार्स पावर की मोटर लगेगी ? जनरेटर की दक्षता 86% है।

हल :

मोटर की आउटपुट = जनरेटर की इनपुट

= जनरेटर की आउटपुट / जनरेटर की दक्षता
= 230 volt × 20 amp / 86%
= 230 × 20 / 0.86
= 5348.8
= 5348.8 / 735.5 H.P. (H.P. 735.5 Watt)
= 7.272 H.P. ans.

Fleming's right hand and left hand rule in hindi.

फ्लैमिंग का दाएँ हाथ का नियम (Fleming’s Right Hand Rule) :

इस नियम के अनुसार दाएँ हाथ के अंगूठे, पहली उँगली और दूसरी उँगली को इस प्रकार रखें कि वे एक-दूसरे से समकोण पर रहें। अंगूठा कन्डक्टर की गति की दिशा, पहली उँगली फ्लक्स की दिशा और दूसरी उँगली कन्डक्टर में उत्पन्न वि.वा. बल की दिशा बताती है।


फ्लेमिंग के बाँये हाथ का नियम (Fleming's Left Hand Rule) :

यह नियम आर्मेचर के घूमने की दिशा ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि बाँये हाथ को इस प्रकार फैलाया जाता है कि अँगूठा, पहली उँगली और बीच की उँगली एक-दूसरे से समकोण पर रहें जैसा कि चित्र में दिखाया गया है और यदि पहली उँगली मैग्नेटिक लाइन्स की दिशा में रहे और बीच की उँगली करन्ट की दिशा में हो तो अँगूठा आर्मेचा के घूमने की दिशा बताता है। यदि करन्ट की दिशा विपरीत हो जाए तो घूमने की गति की दिशा भी विपरीत हो जाती है।

3 March 2017

D.C. Motor (डी.सी. मोटर)

डी.सी. (D.C. Motor):-
वह मशीन जो विद्युत शक्ति को यांत्रिक शक्ति में परिवर्तित करती है डी.सी. मोटर कहलाती है l जबकि इस मशीन के आर्मेचर और फील्ड में डी.सी. सप्लाई दी जाती है ।
मोटर की बनावट, डी.सी. जनरेटर के समान होती हैं लेकिन यह जनरेटर की व्युत्क्रम क्रिया (Reverse action) करता है जनरेटर वि.वा. बल के रूप में विद्युत पावर उत्पन्न करता है जबकि मोटर विद्युत पावर से चलती है और उसकी शाफ्ट पर मैकेनिकल पावर प्राप्त होतो है ।

Electrical Power ---> Motor ---> Mechanical Power
D.C. Supply (Electrical Power) --->D.C. Motor ---> Mechanical Power

कार्य सिद्धान्त (Working Principle):-

चित्र में दर्शाये अनुसार एक चालक जिसमें से धारा प्रवाहित हो रही हैं एक चुम्बकीय क्षेत्र में रखा हुआ है। चालक में से धारा प्रवाहित होने के कारण इसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।
चित्र (अ) के अनुसार चालक में धारा प्रवाह हो रही है तथा मुख्य चुम्बकीय क्षेत्र भी उपस्थित है। चालक में धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र, चालक के ऊपर मुख्य क्षेत्र के साथ कार्य करता है लेकिन चालक के नीचे मुख्य क्षेत्र का विरोध करता है। इसका परिणाम यह होता कि चालक के ऊपर के क्षेत्र में फ्लक्स का जमाव हो जाता है तथा नीचे वाले क्षेत्र में फ्लक्स घनत्व (Flux density) कम हो जाता है।

इससे यह स्पष्ट है कि जब चालक पर बल कार्य कर रहा है तो वह चालक को नीचे की ओर धकेलने का कार्य करता है जैसा कि चित्र (अ) में तीर के निशाने से दिखाया गया है।

चित्र (ब) के अनुसार यदि चालक की धारा की दिशा में परिवर्तन कर दिया जाये तो फ्लक्स का जमाव नीचे की ओर हो जायेगा तथा वह चालक को ऊपर की ओर ले जाने का प्रयत्न करेगा । वास्तव में आर्मेचर पर कई क्वायल्स (Coils) लगाई होती है । अत: ज्योंही आर्मेचर आगे की दिशा में घूमेगा तो पूर्व चालक के स्थान पर पीछे के चालक (Conductor) आते रहेंगे I जिन पर पुन: N तथा S ध्रुवों के अधीन पूव दिशा में बल प्रभाव पड़ता रहेगा जिसके कारण आर्मेचर एक ही दिशा में घूमता रहेगा ।

2 March 2017

Make an Electrolyte for Battery in Hindi

Practical:-
बैट्री के लिए इलैक्ट्रोलाइट तयार करना।
विधि (Method) :-
1) एक बीकर या जार में एक लीटर गंधक का तेजाब (सरूफ्यूरिक एसिड) लो ।
2) किसी दूसरे बर्तन में तीन लीटर शुद्ध पानी (Distilled water) लो ।
3) अब तेजाब को थोड़ा-थोड़ा पानी में डालकर कांच की छड़ से हिलाते जाओ ।
4) बने हुए इलैबट्रोलाइट की रीडिंग हाइड्रोमीटर से नापो।
5) ठण्डा होने पर दुबारा उसकी रीडिंग हाइड्रोमीटर से नापो । यह रीडिंग 1250 के बीच में होनी चाहिए।
एक बैट्री का इलैवट्रोलाइट जिसकी आपेक्षिक घनत्व (स्पैसिफिक ग्रेविटी ) 1100 से 1300 तक की तैयार करने के लिए शुद्ध पानी और सल्फयूरिक तेजाब की मात्रा नीचे दी गई है ।
स्पैसिफिक ग्रेविटी :-
1100 हे, तो 9.8 भाग पानी की मात्रा चाहिए।
1200 हे, तो 4.3 भाग पानी की मात्रा चाहिए।
1300 हे, तो 2.5 भाग पानी की मात्रा चाहिए।
सावधानियाँ (Precautions) :-
1) हमेशा तेजाब को पानी में डालना चाहिए अर्थात पानी को तेजाब में नहीं डालना चाहिए ।
2) इलैवट्रोलाइट को मिलाने के लिए कांच की छड़ प्रयोग करनी चाहिए ।
3) बूंद-बूंद करके तेजाब को मानी में डालना चाहिए ।
4) तेजाब को सावधानी पूर्वक पकड़ना चाहिए ।
5) बने हुए इलैवट्रोलाइट की आपेक्षिक घनत्व (स्पेसिफिक ग्रेविटी) 1250 से 1280 तक होनी चाहिए।

Ohm's Law Theory and Practical in Hindi

ओह्म का नियम (Ohm's Law):-

वैज्ञानिक जी.एस. ओह्म ने डी.सी. सर्किट में बहने वाली करंट, वोल्टेज व रेजिस्टैंस के सम्बन्ध को इस नियम द्वारा बताया है वही ओह्म का नियम कहलाता है । इस नियम के अनुसार, "यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाओं में परिवर्तन न किया जाए तो उस चालक में बहने वाली करंट, चालक के दोनों सिरों के बीच दिए गए वोल्टेज (Potential Difference) के समानुपाती होती है।
(भौतिक अवस्था से तात्पर्य उस चालक की लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई, ताप आदि से है)।
(V = I.R)
( I = V/R )

Practical:- Determine ohm's law.
उद्देश्य (Aim) :- ओह्म नियम को सिध्द करें।


विधि (Method) :-
1) चित्र के अनुसार कनैक्शन करो l
2) रियोस्टेट को अधिकतम रखो।
3)  स्विच को आन करो ।
4) रियोस्टेट को कम व ज्यादा व्यवस्थित करके सप्लाई वोल्टेज में परिवर्तन करो ।
5) वोल्ट मीटर तथा एम्मीटर क्री रीडिंग फिर नोट करो।
6) ओह्म नियम द्वारा रैजिस्टैंस ज्ञात करो ।

सावधानियाँ (Precautions) :-
1) कनैक्शन लूज नहीं होने चाहिए ।
2) एम्मीटर सीरीज में जोड़ना चाहिए ।
3) वोल्ट मीटर हमेशा लोड (स्थिर रैजिस्टैंस) के एक्रॉस में जोडना चाहिए।
4) वोल्ट मीटर का + ve टर्मिनल सप्लाई के + ve के साथ तथा - ve टर्मिनल - ve के साथ जोडना चाहिए।
5) स्विच ऑन करने के पहले मीटर की सूई जीरो पर एडस्ट कर लेनी चाहिए ।
6) रियोस्टेट को धीरे-धीरे कम व ज्यादा करना चाहिए ।

निरीक्षण (Observation) :-
ऐसा करने पर आपको पता चलेगा कि, " वोल्टेज को बढ़ाने से करंट भी बढ़ता है तथा उसके कम होने से करंट भी कम होता हैं।

Study of different types of Meters (मीटरों का अध्ययन)

वोल्ट मीटर (Volt Meter):- यह सप्लाई वोल्टेज मापने के लिए इस्तेमाल किया जाता है l डी.सी. सप्लाई मापने के लिए डी.सी. वोल्ट मीटर जिसे मूविंग क्वायल टाईप कहते हैं तथा ए.सी. सप्लाई नापने के लिए ए.सी. वोल्ट मीटर जिसे मूविंग आयरन टाईप कहते हैं, यह मीटर डी.सी. सप्लाई भी नाप सकता है तथा वोल्टेज की रेंज के अनुसार बनाये जाते हैं, जैसे 0-300 V, 0-600 V इत्यादि ।



एम्पीयर मीटर (Ampere Meter):- यह लोड की करंट मापने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जोकि डो.सी. तथा ए.सी. के बनाये जाते हैँ । यह भी मूविंग क्वायल और मूविंग आयरन टाईप कै बनाए जाते हैं जिनकी मापने की रेंज लोड की करंट के अनुसार होती है जैसे 0-1 A, 0-5 A, 0-15 A इत्यादि ।

वाट मीटर (Watt Meter):- यह मीटर लोड की पावर मापने के लिए प्रयोग किया जाता है जोकि वोल्ट मीटर और एम्पीयर मीटर के गुणनफल को दर्शाता है । ए.सी. की पावर मापने के लिए इन्डक्शन टाइप तथा ए.सी. और डी.सी. की पावर मापने के लिए डाइनमो टाइप वाट मीटर बनाए जाते हैं । जिनकी रेंज इस प्रकार होती हैं : 2.5/5A, 150-300-600 V, 1250 W इत्यादि ।


एनर्जी मीटर (Energy Meter):- यह मीटर खर्च हुईं विद्युत-ऊर्जा को मापने के लिए लगाया जाता है। बिजली सप्लाई कम्पनी मीटर पर आयी हुई रीडिंग के आधार पर उपयोग की गई विद्युत खपत पर पैसे वसूल करती हैँ। डी.सो. सप्लाई पर प्रयोग होने वाले एनर्जी मीटर कम्यूटेटर टाइप और ए.सी. सप्लाई पर इन्डक्शन टाइप एनर्जी मीटर उपयोग किये जाते हैं। यह मीटर विद्युत कम्पनी द्वारा लगाये जाते हैं जोकि किलो वाट ऑवर में रीडिंग (KWh) देते हैं। एक किलो वाट ऑवर एक यूनिट के बराबर होता है।

1 March 2017

Earthing

अर्थिंग (earthing) :
पृथ्वी का वोल्टेज शून्य माना जाता है । इसलिए किसी वैद्युतिक साधन कोे पृथ्वी से जोड देने पर उसका वोल्टेज भी शून्य हो जाता है। किसी ताँबे या जी.आईं. की प्लेट को पृथ्वी के अन्दर 2.5 या 3 मीटर नीचे अथवा नमी तक लगा देने को अर्थिंग कहते हैं। इसका वोल्टेज शून्य होता है और इससे सम्पर्क में आने वाले सभी विद्युतीय साधनों का भी वोल्टेज शून्य हो जाता है चाहे उस साधन में कितना भी वोल्टेज हो।
दूसरे शब्दों में कहूं तो,
किसी विद्युत उपकरण के विद्युत धारा वहन न करने वाले धातु भागों तथा न्यूट्रल तार को नगण्य प्रतिरोध तार द्वारा भू-भाग से इस प्रकार सम्बन्धित करने की क्रिया को, जिसके द्वारा उसमें आने वाले किसी भी विद्युत आवेश को बिना किसी खतरे के पृथ्वी में विसर्जित कर दिया जाये, अर्थिंग कहलाता है। अर्थिंग के लिए किसी नगण्य प्रतिरोधी चालक तार का उपयोग किया जाता है, जिसका एक सिरा भू-सम्पर्कित किए जाने वाले उपकरण से तथा दूसरा सिरा भूमि-भाग से संयोजित होता है। अर्थिंग के लिए उपयोग में लाया जाने वाला यह तार सतत् (continuous) होना चाहिए तथा प्रभावी रूप से भू-भाग से सम्बन्धित होना चाहिए।
अर्थिंग के उदेश्य-
1) जीवन का बचाव (safety of human life) :
किसी वैद्युतिक उपकरण की धात्विक बॉडी का सम्बन्ध विद्युत से हो जाता है या मशीनों की वाइंडिंग या वायरिंग में लीकेज पैदा हो जाती है अथवा इन्मुलेशन खराब होने से उसके उपरी भाग में विद्युत आ जाती है तो स्पर्श करने मात्र से जीवन समाप्त हो सकता है।
यदि 'अर्थ' का संबंध उपकरण या मशीन से कर दिया जाए तो स्पर्श करने वाले व्यक्ति को कोई हानि नहीं होगी।
2) लाइन के वोल्टेज को स्थिर रखने के लिऐ ' अर्थिंग' किया जाता है। प्रत्येक आल्टरनेटर और ट्रान्सफार्मर के न्यूट्रल को ' अर्थ' किया जाता है।
3) बडी़-बडी़ बिल्डिंगों को आसमानी विधुत से बचाने के लिए तडि़त चालक (Lighting arrester) प्रयोग किए जाते हैं जिससे आसमानी विद्युत अर्थ हो जाती है।
4) ओवरहैड लाइन से लगी वैद्युतिक मशीनों आदि को आसमानी विद्युत से बचाने के लिए ' अर्थिंग' की जाती है।
5) टैलीग्राफी में "अर्थ" को रिटर्न वायर के रूप में प्रयोग किया जाता है।
अर्थिंग न होने से हानियाँ :
1) लीकेज या उपकरण की बॉडी का ' जीवित ‘ तार से सम्पर्क हो जाने पर धवका (shock) लग जाता है और मृत्यु भी हो सकती है।
2) बडी़-बडी़ बिल्डिंग और विद्युत मशीनों को आसमानी विद्युत से हानि हो सकती है।
3) न्यूट्रल के द्वारा लाइन में स्थिर वोल्टेज नहीं मिलते हैं।

Conductors and Insulators (चालक और कुचालक)

चालक (Conductors) :-
"जिनमें होकर करंट आसानी से प्रवाहित हो सकती है।"
ऐसे पदार्थ जिनमें सै करन्ट का प्रवाह अर्थात् मुक्त इलैक्ट्रोन्स (Free electons) का प्रवाह सुगमता से स्थापित हो जाता है चालक कहलाते हैं। किसी पदार्थ की चालकता (Conductivity), उसमें उपस्थित मुक्त इलैक्ट्रोन्स की संख्या के द्वारा निर्धारित होती है। अधिकांश धातुएँ अच्छी चालक होती हैं।
चालक :- चाँदी (Silver), ताँबा (Copper), पीतल (Brass), एल्युमिनियम (Aluminium), लोहा (Iron), सीसा (Lead), राँगा (Tin), जस्ता (Zinc), यूरेका (Eureka), नाइक्रोम (Nichrome), टंगस्टन (Tungsten), कार्बन (Carbon).
Note :- उपरोक्त पदार्थों में से पीतल, यूरेका तथा नाइक्रोम मिश्र धातुएँ हैं। पदार्थों के उपयोगों के आधार पर उनमें उपस्थित घटक धातुओं की प्रतिशत मात्रा भिन्न-भिन्न हो सकती है। इनका सामान्य संगठन निम्न प्रकार होता है :
(i) पीतल - ताँबा 67%, जस्ता 33%
(ii) यूरेका - अध्याय निकिल 60%, ताँबा 40%
(iii) नाइक्रोम - निकिल 80%, क्रोमियम 20%
कुचालक (Insulators) :-
"जिनमें होकर करंट प्रवाहित नहीं हो सकती।"
ऐसे पदार्थ जिनमें करन्ट का प्रवाह अथवा मुक्त इलैक्ट्रोन्स का मुक्त होना या उनका किसी दिशा में मार्ग परिवर्तन होना कठिन होता है, कुचालक कहलाते हैं। कुछ कुुचालकों के परमाणुओं की अन्तिम कक्षा में 4 अथवा 8 इलैक्ट्रोन्स होते हैं। अन्तिम कक्षा में 8 इलैवट्रोन्स रखने वाले पदार्थ बहुत अच्छे कुचालक होते हैं। रसायन शास्त्र में ऐसै पदार्थ निष्क्रिय पदार्थ (Inert elements) कहलाते हैं और वे किसी अन्य तत्व के साथ संयोग नहीं करते।
कुचालक :- शुष्क लकड़ी (Dry Wood), स्लेट (Slate), कागद (Paper), मार्बल (Marble), शैलेक (Shellac), सूत (Cotton), एस्बेस्टस (Asbestos), फाइबर (Fiber), काँच (Glass), मोम (Paraffin Wax), पोर्सलीन (Porcelain), Transformer oil, एम्पायर क्लॉथ (Empire cloth), रबर (Rubber), रेजिन (Resin), बिट्यूमन (Bitumen), बैकेलाइट (Bakelite), अभ्रक (Mica), एबोनाइट (Ebonite), वल्केनाइज्ड रबर (Vulcanised Rubber).
अर्ध्दचालक :-
इनमें मुक्त इलेक्ट्रान्स नहीं होते हैं।
इनकी प्रतिरोधकता मध्यम होती है।
इनमें धारा का प्रवाह कम होता है।
इनके परमाणुओं के अंतिम कक्ष में इलेक्ट्रोन्स की संख्या अधिकतम 4 होती है।
तापक्रम के बढ़ने पर इनका प्रतिरोध कम होता है।

11 February 2017

How to identify Single Phase Induction Motor terminal?/How to identify Starting and Running Winding?(Practical)

उद्देश्य (AIM): सिंगल फेज परमानेंट कैपेसिटर मोटर / कैपेसिटर स्टार्ट मोटर के टर्मिनलों की पहचान करना।


कार्यविधि (Procedure):A) By using Multimeter /ohm-meter:

● चार लीडों वाली मोटर के लिए...

1) ओह्म-मीटर के कॉमन लीड को मोटर के चार में से किसी एक टर्मिनल के साथ और दूसरी लीड को बारी-बारी से बचे हुए तीन टर्मिनलों पर लगाये। जिस टर्मिनल पर ओह्म मीटर रीडिंग दिखाता है वह उसी क्वायल का दूसरा टर्मिनल है। अब ओह्म-मीटर की रीडिंग को नोट करें।
2) अब ओह्म-मीटर की लीडों को बचे हुए बाकि दो टर्मिनलों पर लगायें और इसकी रीडिंग नोट करें । यदि यह रीडिंग क्र.स.1 में नोट की गयी रीडिंग से अधिक है तो ये स्टार्टिंग वाइंडिंग के टर्मिनल हैं और यदि यह कम है तो ये रनिंग वाइंडिंग के टर्मिनल हैं।

●  तीन लीडों वाली मोटर के लिए...

1) ओंहा-मीटर की common लीड को मोटर के तीन में से किसी एक टर्मिनल के साथ और दूसरी लीड को बारी-बारी से बचे हुए दो टर्मिनलों पर लगाये और ओह्म-मीटर की रीडिंग को नोट करें ।
2) इसी प्रकार बचे हुए दो टर्मिनलों के बीच रीडिंग नोट करें और तीनों रीडिंग की आपस मे तुलना करें।
3) जिन दो टर्मिनलों के बीच सबसे अधिक रीडिंग है वे रनिंग व स्टार्टिंग बाइंडिंग के टर्मिनल हैं तथा बचा हुआ टर्मिनल common है।
4) अब ओह्म-मीटर की common लीड को मोटर के common टर्मिनल के साथ और दूसरी लीड को बारी-बारी से बचे हुए दो टर्मिनलों पर लागायें तथा ओह्म-मीटर की रीडिंग को नोट करें।
5) मोटर के common टर्मिनल के साथ जो टर्मिनल अधिक रीडिंग दिखाता है वह स्टार्टिंग वाइंडिंग का टर्मिनल है, और जो कम रीडिंग दिखाता है वह रनिंग वाइंडिग का टर्मिनल है।

निष्कर्ष (Conclusion): स्टार्टिंग वाइंडिंग में पतली तार के अधिक टर्न होने के कारण इसकी रेजिस्टैंस अधिक होती है, इसलिए ओह्म-मीटर अधिक रीडिंग दिखाता है। रनिंग वाइंडिंग में मोटी तार के कम टर्न होने के कारण इसकी रेजिस्टैंस कम होती है, इसलिए ओह्य-मीटर कम रीडिंग दिखाता है।

Note: ये टैस्ट लैम्प द्वारा लैम्प की रोशनी में अन्तर देखकर भी किये जा सकते हैं।