22 May 2016

Construction of D.C. Generator in Hindi ( डी.सी. जनरेटर की बनावट )

डी.सी. जनरेटर में निम्न भाग होते हैं—
१) योक (Yoke) - यह कास्ट आयरन या कास्ट स्टील का बना होता है इस पर ध्रुव तथा अन्य भाग लगाए जाते हैं यह मैग्नेटिक फ्लक्स को मार्ग (Path) प्रदान करता है।
२) आर्मेचर (Armature) - एक बेलनाकार ड्रम की तरह होता है इसके दो भाग होते हैं-
अ) आर्मेचर कोर : इसका कार्य मैग्नेटिक फ्लक्स के लिए कम रिलेक्टेंस का मार्ग प्रदान करना है यह स्टील कि पतली लेमीनेशन को इकठ्ठा करके बनाया जाता है। इसमें स्लॉट बने हाेते हैं जिसमें आर्मेचर वाइण्डिंग फिट हाेती है।
ब) आर्मेचर वाइण्डिंग : आर्मेचर काेर के स्लॉट में ताँबे के इन्सुलेटेड ताराें से वाइण्डिंग की जाती है जिसमें विद्युत वाहक बल उत्पन्न हाेता है। वाइण्डिंग दाे प्रकार से की जाती है—
I) लैप वाइण्डिंग - इस वाइण्डिंग में कॉइल एक-दूसरे पर चढ़ाये हुए की जाती है। इसे पैरलल वाइण्डिंग भी कहते हैं क्योंकि इसके पैरलल मार्ग पाेलाें की संख्या के बराबर हाेते हैं। इसके कनेक्शन पैैरलल में किए जाते हैं जैसे कि चित्र २.ब.१ में दिखाया गया है। यह कम वोल्टेज और अधिक करन्ट वाली मशीनों में उपयोग की जाती है।
II) वेव वाइण्डिंग - यह सीरीज वाइण्डिंग हाेती है। इसके कनेक्शन सीरीज में आगे की ओर हाेते हैं। इसमें पैरलल मार्ग केवल दाे ही हाेते हैं। वाइण्डिंग लहर (wave) की भाँति पूरे आर्मेचर पर हाेती है। प्रत्येक मार्ग में आर्मेचर की आधी करन्ट प्रवाहित हाेती है। यह अधिक वोल्टेज और कम करन्ट वाली मशीनों में प्रयाेग की जाती है। चित्र २.ब.२ देखें —
३) ध्रुव (Pole) - यह चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं इनके आगे का भाग पाेल शू (Pole shoe) कहलाता है जिसका क्षेत्र अधिक हाेता है, पाेल के पीछे के भाग में पाेल काेर (Pole core) हाेती है।
४) क्षेत्र कुंडली (Field Winding) - पाेल के ऊपर फील्ड वाइण्डिंग लगाई जाती है जाे कॉपर के तार से बनी हाेती है।
५) दिक्-परिवर्तक (Commutator) - यह आर्मेचर में उत्पन्न ए.सी. विद्युत वाहक बल काे डि.सी. विद्युत वाहक बल में बदलने का कार्य करता है। यह हार्ड ड्रॉन कॉपर का बना होता है क्योंकि कॉपर का रजिस्टैंस कम हाेता है।
६) ब्रुश व रॉकर - रॉकर बैकेलाईट से गाेल आकार में बना हाेता है, रॉकर पर ब्रुश तथा ब्रुश हाेल्डर, एडजस्टेबिल स्प्रिंग और पिगटेल वायर हाेता है ब्रुश कम्यूटेटर की करंट काे एकत्रित करता है यह कार्बन का बना हाेता है।
७) बियरिंग - डी.सी. मशीन में घूमने वाले भाग के सहारे के लिए बियरिंग लगायी जाती है इससे बिना कम्पन के राेटर आसानी से घूमता है। यह सामान्यतः दाे प्रकार की होती है— अ) गन मैटल ब्रुश बियरिंग, ब) बॉल या रॉलर बियरिंग।

18 May 2016

Types of Generator in Hindi (जनरेटर के प्रकार)

जनरेटर का वर्गीकरण निम्न आधार पर किया जाता है-
१) प्राईम मूवर के आधार पर (On the basis of Prime Mover) :
जनरेटर में लगे कंडक्टराें काे घुमाने वाले भाग को प्राईम मूवर कहते हैं।
ये तीन प्रकार के होते हैं -
१) वाटर टरबाइन टाइप : कंडक्टर जनरेटर की घूमने वाली शाफ्ट पर लगे हाेते हैं। यह शाफ्ट पानी की शक्ति से घुमाई जाती है। पानी को ऊँचे स्थान पर बाँध बनाकर एकत्रित कर लिय जाता है। शाफ्ट को एक व्हील (wheel) से लगा देते हैं और व्हील की परिधि पर समान दूरी पर पंखडियाँ (vanes) लगी होती हैं। बाँध का पानी इन पंखडियाें पर गिरता है तो पंखडियाँ घूमने लगती हैं। इसके साथ ही शाफ्ट घूमने लगती है और कंडक्टर वि.वा.बल उत्पन्न करने लगता है।


२) स्टीम टरबाइन टाइप : शाफ्ट स्टीम से चलाया जाता है जैसे कि रेल का इंजन चलता है। शाफ्ट पर एक व्हील, पंखडियों वाला लगा होता है। इन पंखडियों पर हाई प्रेशर पर नोजल से स्टीम छाेडी़ जाती है। स्टीम के दबाव से व्हील तेज गति से घूमने लगता है साथ ही शाफ्ट घूमने लगती है।
३) डीजल इंजन टाइप : जनरेटर की शाफ्त को डीजल इंजन से जोड दिया जाता है। डीजल इंजन के चलने के साथ-साथ शाफ्ट भी घूमने लगती है।
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२) उत्तेजना विधि के आधार पर (On the Basis of Excitation Method) :
१) स्थाई चुम्बक टाइप : जनरेटर में चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न करने के लिए चुम्बक का प्रयोग किया जाता है। जिस जनरेटर में स्थाई चुम्बक के ध्रुव प्रयोग किए जाते हैं। वह स्थाई चुम्बक वाले जनरेटर या डायनेमो कहलाता है। यह साइकिल, टेलीफोने, मैगर, आदि में प्रयोग होता है। यह बहुत कम वोल्टेज उत्पन्न करता है।

२) सैपरेटली एक्साइटेड टाइप : इस जनरेटर में चुम्बकीय फ्लक्स इलेक्ट्राेमैगनेट के द्वारा पैदा की जाती है। इसके ध्रुवाें की ध्रुवता समान रखने के लिए बैट्री या डी.सी. विद्युत से ध्रुवों को उत्तेजित किय जाता है। इस प्रकार के जनरेटर ए.सी. उत्पन्न करने वाले ए.सी. जनरेटर या आल्टरनेटर कहलाते हैं।
३) सेल्फ एक्साइटेड टाइप : इस टाइप के जनरेटर के ध्रुव स्वयं उत्पन्न विद्युत करन्ट से उत्तेजित (excited) होते हैं। प्रारंभ मे इन ध्रुवों में अवशिष्ट चुम्बकत्व (residual magnetism) हाेता है जिससे थोड़ा वोल्टेज उत्पन्न  होता है। यही वोल्टेज पुनः ध्रुवों मे जाकर उन्हें अधिक चुम्बकीय बना देता है तथा वोल्टेज और अधिक उत्पन्न होने लगता है। इस प्रकार के जनरेटर डी.सी. जनरेटर या डायनेमो कहलात हैं।


15 May 2016

Generation of Electricity in Hindi ( विद्युत उत्पादन )

उर्जा के अन्य स्रोतों से विद्युत शक्ति का निर्माण ' विद्युत उत्पादन ' कहलाता है। विद्युत का उत्पादन जहाँ किया जाता है उसे बिजलीघर कहते हैं। बिजलीघरों में विद्युत शक्ति जनरेटर के द्वारा बनाई जाती है जाे मशीन जनरेटर काे चलाती है उसे प्राईम मूवर (Prime Mover) कहते हैं। जिसे किसी किसी अन्य युक्ति से घुमाया जाता है। प्राईम मूवर के लिये जल टर्बाइन, वाष्प टर्बाइन या गैस टर्बाइन हो सकती है।  प्राईम मूवर अपनी शक्ति कई साधनों से लेता है। ये साधन निम्नलिखित प्रकार के हाेते हैं-
अ) प्रारंभिक साधन जैसे सुर्य, हवा और ज्वार भाटा।
ब) माध्यमिक (secondary) साधन, जैसे काेयला, जलने वाला तेल, गैस, पानी तथा अणु शक्ति।
१) जल विद्युत बिजली घर
२) डीजल पावर हाउस
३) भाप से चलने वाले पावर हाउस
४) पवन शक्ति
५) बायो गैस
६) साैर ऊर्जा इत्यादि
व सभी बिजलीघरों में विद्युत शक्ति जनरेटर के द्वारा बनाई जाती है। बिजली घर चाहे जाे भी हाे उसका मुख्य कार्य ऊर्जा स्त्रोत द्वारा प्राप्त ऊर्जा से विद्युत निर्मान करना होता है। यह ऊर्जा प्राईम मूवर के लिए लाभदायक हाेती है जिसका उपयोग प्राईम मूवर द्वारा जनित्र (Generator) में विद्युत निर्मान करने के लिए किया जाता है।
चित्र में विद्युत जनरेटर से जुड़ा हुआ वाष्प टर्बाइन (प्राईम मूवर) उदाहरण हेतु दर्शाया गया है:


11 May 2016

What is electricity? विद्युत क्या हैं?

विद्युत क्या हैं?

जब हम विद्युत उपकर्नो को देखते हैं, व उनका उपयोग करते हैं, तब सबसे पहले मन में ये प्रश्न आता है कि आखिर ये विद्युत क्या है? विद्युत किस तरह कार्य करती है?
वास्तव में विद्युत ऊष्मा या प्रकाश कि ही तरह एक प्रकार कि ऊर्जा है, लेकीन वो आंखों से दिखाई नही देती है। पर आप इसके प्रभाव से इसकी उपस्थिति का पता लगा सकते है।

चालक में होने वाले इलेक्ट्रॉन के प्रवाह को हि विद्युत कहा जाता है।
आप इसके बहाव को महसुस कर सकते है। लेकीन उसे देख नही सकते।
जब किसी चालक तार में इलेक्ट्रॉन एक सिरे से दुसरे सिरे कि आेर गति करते हैं ताे कहा जाता है कि उस चालक तार में विद्युत धारा या करंट बह रही है।
किसी भी चालक के सामान्य अवस्था में उनके अंदर के इलेक्ट्रॉन गतिमान नही रहते है।पर जब इस चालक तार के दोनों सिरों पर विद्युत दबाव डाला जाता है तो उस चालक के अंदर के इलेक्ट्रॉन गति करते हुए चालक के एक सिरे से दुसरे सिरे कि ओर गति करने लगते है। चालक के अन्दर इलेक्ट्रॉनाें के इसी बहाव को ' विद्युत धार ' या करन्ट कहा जाता है। (The flow of electron across a substance is called electric current)। विद्युत धारा को " I " से प्रदर्शित करते है।
उदाहरण :
चालक के अंदर इलेक्ट्रॉन का प्रवाह:
इस चित्र में एक कांच के नली में छाेटी-छाेटी गाेलियाँ भर दी गई है।ट्यूब की सामान्य अवस्था में ये गोलियाँ ट्यूब के अंदर स्थिर रहती है, परंतु जब इन गोलियों पर बाहर से कोई बल लगाय जाता है तो एक के बाद एक, सभी गोलियाँ हलचल करने लगेगी तथा अन्तिम गोली ट्यूब से निकलकर स्वतंत्र हाे जाती है।