13 October 2016

हीटर के लिए एलीमेंट कैसे बनाए ? (How to make element for Heater?)

उद्देश्य (Aim) : एक हीटर के लिए 1000 वाट का एलीमेंट बनाना ।

परिचय : हीटर दो प्रकार के होते हैं :
1. रूम हीटर, 2. टेबल हीटर । 

दोनों प्रकार के हीटरों का एलीमेंट नाईंक्रोम तार का बनाया जाता है । यह तार निक्कल तथा क्रोमियम का मिश्रण है । इसका काम करने का तापमान 115℃ तक होता है । यह तार गोल तथा रिबन के रूप में बनाई जाती है । ज्यादातर हीटरों में गोल रूप की तार प्रयोग की जाती है । यह अलग-अलग साइजों में बनाई जाती है; जैसे 24, 26, 28, S.W.G. एक हजार वाट के लिए 24 S.W.G. की तार प्रयोग की जाती है जिसकी लम्बाई 12 मीटर है ।

विधि (Method) :

1) जी.आई. वायर को सीधा करो ।
2) जी.आई. वायर को ड्रिल मशीन में लगाओ ।
3) बैटन में तार डालो ।
4) बैटन को पकडकर ड्रिल मशीन को घुमाओं ।
5) ड्रिल मशीन को वाइस में कस दो ।
6) तार का सिरा ड्रिल मशीन में लगाओ ।
7) 1000 वाट के लिए 11 इंच ( 27.28 सेमी.) लम्बाई का एलीमेंट बनाओ ।

उद्देश्य (Aim) : एक 600 वाट 220 वोल्ट हीटर के लिए एलीमेंट की लम्बाई और तार का साइज ज्ञात करना ।

विधि (Method) :
1) सबसे पहले हीटर का करंट 500 ℃ पर निम्नलिखित सूत्र द्वारा ज्ञात करो ।
                         I = P ÷ V
                           = 600 ÷ 220
                         I = 2.72 एम्पीयर

2) हीटर का रेजिस्टैंस निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात करो ।        
                             R = V ÷ I
                                 = 220 ÷ 2.72
                                 = 80.80 ओह्म

3) दी गई तालिका से 2.72 अर्थात् 2.8 एम्पीयर के लगभग है उसका तार का नम्बर मालूम करो जोकि 28 S.W.G. है ।

4) अब तालिका के द्वारा तार की लम्बाई मालूम करो ।

2-8 एम्मीयर के लिए तार की लम्बाई = 2.99 ओह्म/फुट अर्थात् 3 ओह्म/फुट ।

5)  एलीमेंट की लम्बाई ज्ञात करो।

ऐलीमेंट की लम्बाई रेजिस्टैंस/ओह्म प्रति फुट = अर्थात् 27 फुट (810 सेमी.)

6) 600 वाट हीटर के एलीमेंट तार की लम्बाई 27 फुट और साइज 28 S.W.G. का एलीमेंट बनाओ।

25 August 2016

Main Difference Between Plate Earthing and Pipe Earthing in hindi

प्लेट तथा पाईप अर्थिंग में मुख्य अंतर क्या है? 
उत्तर :
प्लेट अर्थिंग बनाने के लिए एक तांबे की प्लेट, जिसका साईज 60 cm × 60 cm × 3.18mm हो, को तीन मीटर नीचे जमीन में गडा़कर उसके साथ नट बोल्ट से कसकर एक तांबे का तार, पाईप के द्वारा बाहर निकाल लेते हैं, यही तांबे का तार अर्थिंग का कार्य करता है। तांबे की प्लेट को अच्छी तरह से नमक व कोयले के मिश्रण से ढंका जाता है।


पाईप अर्थिंग बनाने के लिये 38 mm व्यास तथा 3 मीटर लम्बे एक जी.आई. पाईप को सीधे जमीन में गाड दिया जाता है। यही पाईप अर्थ इलेक्ट्रोड का कार्य करती है। अर्थ तार पाईप के उपरी हिस्से पर नट - बोल्ट के साथ कसी हुई होती है। पाईप के चारों ओर के भाग को कोयले तथा नमक से भर दिया जाता है, ताकि अर्थिंग प्रणाली की कार्यकुशलता बढ़ सकें।

22 August 2016

E.M.F. Induced in the D.C. Generator in Hindi

डी.सी. जनेरेटर में उत्पन्न वि.वा.ब.

जनरेटर में फैराडे के नियम के अनुसार कन्डक्टर में E.M.F. ऊर्फ वि.वा.ब उत्पन्न होता है। वि.वा.ब उत्पन्न करने के लिए मैगनेटिक फ्लक्स, कन्डक्टर और घुमाव (Rotation) की अवश्यकता होती है।

माना कि

Z = आरमेचर कन्डक्टरों की कुल संख्या है।

Φ = फ्लक्स प्रति पोल वेबर में

N = आरमेचर की गति, आर.पी.एम . में

P = पोलों की संख्या

A = समानान्तर मार्गों की संख्या

E = उत्पन्न वि.वा.ब , वोल्ट में

● कन्डक्टर द्वारा एक चक्कर में फ्लक्स का कटाव
= Φ.P

● 1 मिनट या 60 सेकिन्ड में आरमेचर की गति = N

● 1 सेकिन्ड में आरमेचर की गति = N/60

एवं एक सेकिन्ड में कन्डक्टर द्वारा पलक्स का कटाव =  Φ.P.N/60

● एक कन्डक्टर में उत्पन्न वि.वा.ब = एक सैकिन्ड में

फ्लक्स का कटाव = Φ.P.N/60 वोल्ट

● आरमेचर कन्डवटरों की संख्या Z और समानान्तर मार्ग A है तो,

● एक समानान्तर मार्ग में कन्डक्टरों की संख्या = Z/A

◆ एक समानान्तर मार्ग में उत्पन्न वि.वा.ब
= Φ.P.N.Z/60.A

{E = Φ.P.N.Z/60.A}

* लूप वाइन्डिग के लिये P = A

E = Φ.Z.N/60 × P/A

* वेव वाइन्डिग के लिए A = 2

E = Φ.Z.N.P/60×2

या

E = Φ.Z.N.P/120

20 August 2016

Electromotive force and Potential Difference in Hindi

इलैक्ट्रोमोटिव फोर्स (EMF) और पोटैंशियल डिफरेन्स (PD)
जब हम सेल के दोनों इलैक्ट्रोडों को किसी तार के द्वारा जोडते है "तो विद्युत एक दिशा में प्रवाह करती हैं "। अब यहा एक प्रश्न निर्माण होता है ? वह ताकत कहाँ से आती है जिससे विद्युत धारा बहती है ।" दो इलैक्टोड के बीच में पोटेंशियल डिफोन्स होता है । यह पोटेंशियल डिफोन्स  EMF द्वारा बनाया जाता है । सेल के अंदर EMF  रासायनिक क्रिया के कारण पैदा होती है ।
उदाहरण के रूप में , वोल्टिक सेल में विद्युत पैदा करते समय जिंक समाप्त हो जाता है । जिंक की खपत से वह ऊर्जा पैदा होती जो विद्युत धारा के प्रवाह के लिए उत्तरदायी है । दूसरे शब्दों में, स्त्रोत द्वारा हर कूलम्ब से जो ऊर्जा प्राप्त होती है, वह EMF कहलाती है । इसके विपरीत एक कूलम्ब चार्ज को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने पर जो ऊर्जा खपत होती है वह दो बिन्दुओं के मध्य का पोटेंशियल डिफरेन्स होता है । आसान भाषा मे कहे तो जब किसी सेल का सर्किट पूर्ण होता हे तो सेल के सिरों पर ऊपलब्ध वोल्टेज P.D. कहलाता है । उदाहरण के लिए चित्र को देखें । इसमें 6 वोल्ट की बैटरी है । इसका अभिप्राय: है कि बैटरी द्वारा हर एक कूलम्ब को बाहरी सर्किट में +ve टर्मिनल से -ve टर्मिनल तक ले जाने मे 6 जूल ऊर्जा प्रदान की जाती है । चित्र में बिंदू P और S के मध्य में पोटेंशियल डिफरेन्स 4 वोल्ट वह ऊर्जा है जो एक कूलम्ब चार्ज P से S तक ले जाने में खपत होती है ।

18 June 2016

Working of A.C./D.C. Generator in Hindi ( A.C./D.C. जनरेटर की कार्य प्रणाली )

यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Power) काे विद्युत ऊर्जा (Electrical Power) में बदलने वाली मशीन को जनरेटर कहते हैं। यदि यह मशीन यांत्रिक ऊर्जा काे D.C. में बदलती है तो यह D.C. जनरेटर कहलाता है और यदि यह मशीन यांत्रिक ऊर्जा को A.C. में बदलती है तो वह आल्टरनेटर कहलाती है।
जनरेटर का कार्य सिद्धांत :
जब किसी चालक से संबंधित चुम्बकय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस चालक में विद्युत वाहक बल (e.m.f) उत्पन्न हो जाता है।
आल्टरनेटर की कार्य प्रणाली :
चित्र में विद्युत चुम्बक के दो ध्रुव N तथा S दर्शाये गये हैं, इस चुम्बक के द्वारा फ्लक्स उत्पन्न हाेता है। एक कुण्डली चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र में घूम रही है, इस कुण्डली के दाेनाें सिरे, स्लिप रिंग से जुड़े रहते हैं। स्लिप रिंग पर कार्बन ब्रुश लगे रहते हैं।
जब कुण्डली, चुम्बकीय क्षेत्र में घूमती है तो फैराडे के विद्युत चुम्बकत्व के नियम के अनुसार कुण्डली में प्रेरित वि.वा.ब. (विद्युत वाहक बल) उत्पन्न हाेता है। इसका तरंग रूप, साइन वेव के रूप में हाेता है। स्लिप रिंग कुण्डली के साथ घूमती है। कार्बन ब्रुश की सहायता से बाहरी परिपथ में A.C. वोल्टेज प्राप्त हाेता है।
ए.सी. वोल्टेज को डी.सी. वोल्टेज में बदलने के लिए डी.सी. जनरेटर में कम्युटेटर लगाते हैं, शेष बनावट आल्टरनेटर के समान हाेती है। चित्र देखें_

22 May 2016

Construction of D.C. Generator in Hindi ( डी.सी. जनरेटर की बनावट )

डी.सी. जनरेटर में निम्न भाग होते हैं—
१) योक (Yoke) - यह कास्ट आयरन या कास्ट स्टील का बना होता है इस पर ध्रुव तथा अन्य भाग लगाए जाते हैं यह मैग्नेटिक फ्लक्स को मार्ग (Path) प्रदान करता है।
२) आर्मेचर (Armature) - एक बेलनाकार ड्रम की तरह होता है इसके दो भाग होते हैं-
अ) आर्मेचर कोर : इसका कार्य मैग्नेटिक फ्लक्स के लिए कम रिलेक्टेंस का मार्ग प्रदान करना है यह स्टील कि पतली लेमीनेशन को इकठ्ठा करके बनाया जाता है। इसमें स्लॉट बने हाेते हैं जिसमें आर्मेचर वाइण्डिंग फिट हाेती है।
ब) आर्मेचर वाइण्डिंग : आर्मेचर काेर के स्लॉट में ताँबे के इन्सुलेटेड ताराें से वाइण्डिंग की जाती है जिसमें विद्युत वाहक बल उत्पन्न हाेता है। वाइण्डिंग दाे प्रकार से की जाती है—
I) लैप वाइण्डिंग - इस वाइण्डिंग में कॉइल एक-दूसरे पर चढ़ाये हुए की जाती है। इसे पैरलल वाइण्डिंग भी कहते हैं क्योंकि इसके पैरलल मार्ग पाेलाें की संख्या के बराबर हाेते हैं। इसके कनेक्शन पैैरलल में किए जाते हैं जैसे कि चित्र २.ब.१ में दिखाया गया है। यह कम वोल्टेज और अधिक करन्ट वाली मशीनों में उपयोग की जाती है।
II) वेव वाइण्डिंग - यह सीरीज वाइण्डिंग हाेती है। इसके कनेक्शन सीरीज में आगे की ओर हाेते हैं। इसमें पैरलल मार्ग केवल दाे ही हाेते हैं। वाइण्डिंग लहर (wave) की भाँति पूरे आर्मेचर पर हाेती है। प्रत्येक मार्ग में आर्मेचर की आधी करन्ट प्रवाहित हाेती है। यह अधिक वोल्टेज और कम करन्ट वाली मशीनों में प्रयाेग की जाती है। चित्र २.ब.२ देखें —
३) ध्रुव (Pole) - यह चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं इनके आगे का भाग पाेल शू (Pole shoe) कहलाता है जिसका क्षेत्र अधिक हाेता है, पाेल के पीछे के भाग में पाेल काेर (Pole core) हाेती है।
४) क्षेत्र कुंडली (Field Winding) - पाेल के ऊपर फील्ड वाइण्डिंग लगाई जाती है जाे कॉपर के तार से बनी हाेती है।
५) दिक्-परिवर्तक (Commutator) - यह आर्मेचर में उत्पन्न ए.सी. विद्युत वाहक बल काे डि.सी. विद्युत वाहक बल में बदलने का कार्य करता है। यह हार्ड ड्रॉन कॉपर का बना होता है क्योंकि कॉपर का रजिस्टैंस कम हाेता है।
६) ब्रुश व रॉकर - रॉकर बैकेलाईट से गाेल आकार में बना हाेता है, रॉकर पर ब्रुश तथा ब्रुश हाेल्डर, एडजस्टेबिल स्प्रिंग और पिगटेल वायर हाेता है ब्रुश कम्यूटेटर की करंट काे एकत्रित करता है यह कार्बन का बना हाेता है।
७) बियरिंग - डी.सी. मशीन में घूमने वाले भाग के सहारे के लिए बियरिंग लगायी जाती है इससे बिना कम्पन के राेटर आसानी से घूमता है। यह सामान्यतः दाे प्रकार की होती है— अ) गन मैटल ब्रुश बियरिंग, ब) बॉल या रॉलर बियरिंग।

18 May 2016

Types of Generator in Hindi (जनरेटर के प्रकार)

जनरेटर का वर्गीकरण निम्न आधार पर किया जाता है-
१) प्राईम मूवर के आधार पर (On the basis of Prime Mover) :
जनरेटर में लगे कंडक्टराें काे घुमाने वाले भाग को प्राईम मूवर कहते हैं।
ये तीन प्रकार के होते हैं -
१) वाटर टरबाइन टाइप : कंडक्टर जनरेटर की घूमने वाली शाफ्ट पर लगे हाेते हैं। यह शाफ्ट पानी की शक्ति से घुमाई जाती है। पानी को ऊँचे स्थान पर बाँध बनाकर एकत्रित कर लिय जाता है। शाफ्ट को एक व्हील (wheel) से लगा देते हैं और व्हील की परिधि पर समान दूरी पर पंखडियाँ (vanes) लगी होती हैं। बाँध का पानी इन पंखडियाें पर गिरता है तो पंखडियाँ घूमने लगती हैं। इसके साथ ही शाफ्ट घूमने लगती है और कंडक्टर वि.वा.बल उत्पन्न करने लगता है।


२) स्टीम टरबाइन टाइप : शाफ्ट स्टीम से चलाया जाता है जैसे कि रेल का इंजन चलता है। शाफ्ट पर एक व्हील, पंखडियों वाला लगा होता है। इन पंखडियों पर हाई प्रेशर पर नोजल से स्टीम छाेडी़ जाती है। स्टीम के दबाव से व्हील तेज गति से घूमने लगता है साथ ही शाफ्ट घूमने लगती है।
३) डीजल इंजन टाइप : जनरेटर की शाफ्त को डीजल इंजन से जोड दिया जाता है। डीजल इंजन के चलने के साथ-साथ शाफ्ट भी घूमने लगती है।
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२) उत्तेजना विधि के आधार पर (On the Basis of Excitation Method) :
१) स्थाई चुम्बक टाइप : जनरेटर में चुम्बकीय फ्लक्स उत्पन्न करने के लिए चुम्बक का प्रयोग किया जाता है। जिस जनरेटर में स्थाई चुम्बक के ध्रुव प्रयोग किए जाते हैं। वह स्थाई चुम्बक वाले जनरेटर या डायनेमो कहलाता है। यह साइकिल, टेलीफोने, मैगर, आदि में प्रयोग होता है। यह बहुत कम वोल्टेज उत्पन्न करता है।

२) सैपरेटली एक्साइटेड टाइप : इस जनरेटर में चुम्बकीय फ्लक्स इलेक्ट्राेमैगनेट के द्वारा पैदा की जाती है। इसके ध्रुवाें की ध्रुवता समान रखने के लिए बैट्री या डी.सी. विद्युत से ध्रुवों को उत्तेजित किय जाता है। इस प्रकार के जनरेटर ए.सी. उत्पन्न करने वाले ए.सी. जनरेटर या आल्टरनेटर कहलाते हैं।
३) सेल्फ एक्साइटेड टाइप : इस टाइप के जनरेटर के ध्रुव स्वयं उत्पन्न विद्युत करन्ट से उत्तेजित (excited) होते हैं। प्रारंभ मे इन ध्रुवों में अवशिष्ट चुम्बकत्व (residual magnetism) हाेता है जिससे थोड़ा वोल्टेज उत्पन्न  होता है। यही वोल्टेज पुनः ध्रुवों मे जाकर उन्हें अधिक चुम्बकीय बना देता है तथा वोल्टेज और अधिक उत्पन्न होने लगता है। इस प्रकार के जनरेटर डी.सी. जनरेटर या डायनेमो कहलात हैं।


15 May 2016

Generation of Electricity in Hindi ( विद्युत उत्पादन )

उर्जा के अन्य स्रोतों से विद्युत शक्ति का निर्माण ' विद्युत उत्पादन ' कहलाता है। विद्युत का उत्पादन जहाँ किया जाता है उसे बिजलीघर कहते हैं। बिजलीघरों में विद्युत शक्ति जनरेटर के द्वारा बनाई जाती है जाे मशीन जनरेटर काे चलाती है उसे प्राईम मूवर (Prime Mover) कहते हैं। जिसे किसी किसी अन्य युक्ति से घुमाया जाता है। प्राईम मूवर के लिये जल टर्बाइन, वाष्प टर्बाइन या गैस टर्बाइन हो सकती है।  प्राईम मूवर अपनी शक्ति कई साधनों से लेता है। ये साधन निम्नलिखित प्रकार के हाेते हैं-
अ) प्रारंभिक साधन जैसे सुर्य, हवा और ज्वार भाटा।
ब) माध्यमिक (secondary) साधन, जैसे काेयला, जलने वाला तेल, गैस, पानी तथा अणु शक्ति।
१) जल विद्युत बिजली घर
२) डीजल पावर हाउस
३) भाप से चलने वाले पावर हाउस
४) पवन शक्ति
५) बायो गैस
६) साैर ऊर्जा इत्यादि
व सभी बिजलीघरों में विद्युत शक्ति जनरेटर के द्वारा बनाई जाती है। बिजली घर चाहे जाे भी हाे उसका मुख्य कार्य ऊर्जा स्त्रोत द्वारा प्राप्त ऊर्जा से विद्युत निर्मान करना होता है। यह ऊर्जा प्राईम मूवर के लिए लाभदायक हाेती है जिसका उपयोग प्राईम मूवर द्वारा जनित्र (Generator) में विद्युत निर्मान करने के लिए किया जाता है।
चित्र में विद्युत जनरेटर से जुड़ा हुआ वाष्प टर्बाइन (प्राईम मूवर) उदाहरण हेतु दर्शाया गया है:


11 May 2016

What is electricity? विद्युत क्या हैं?

विद्युत क्या हैं?

जब हम विद्युत उपकर्नो को देखते हैं, व उनका उपयोग करते हैं, तब सबसे पहले मन में ये प्रश्न आता है कि आखिर ये विद्युत क्या है? विद्युत किस तरह कार्य करती है?
वास्तव में विद्युत ऊष्मा या प्रकाश कि ही तरह एक प्रकार कि ऊर्जा है, लेकीन वो आंखों से दिखाई नही देती है। पर आप इसके प्रभाव से इसकी उपस्थिति का पता लगा सकते है।

चालक में होने वाले इलेक्ट्रॉन के प्रवाह को हि विद्युत कहा जाता है।
आप इसके बहाव को महसुस कर सकते है। लेकीन उसे देख नही सकते।
जब किसी चालक तार में इलेक्ट्रॉन एक सिरे से दुसरे सिरे कि आेर गति करते हैं ताे कहा जाता है कि उस चालक तार में विद्युत धारा या करंट बह रही है।
किसी भी चालक के सामान्य अवस्था में उनके अंदर के इलेक्ट्रॉन गतिमान नही रहते है।पर जब इस चालक तार के दोनों सिरों पर विद्युत दबाव डाला जाता है तो उस चालक के अंदर के इलेक्ट्रॉन गति करते हुए चालक के एक सिरे से दुसरे सिरे कि ओर गति करने लगते है। चालक के अन्दर इलेक्ट्रॉनाें के इसी बहाव को ' विद्युत धार ' या करन्ट कहा जाता है। (The flow of electron across a substance is called electric current)। विद्युत धारा को " I " से प्रदर्शित करते है।
उदाहरण :
चालक के अंदर इलेक्ट्रॉन का प्रवाह:
इस चित्र में एक कांच के नली में छाेटी-छाेटी गाेलियाँ भर दी गई है।ट्यूब की सामान्य अवस्था में ये गोलियाँ ट्यूब के अंदर स्थिर रहती है, परंतु जब इन गोलियों पर बाहर से कोई बल लगाय जाता है तो एक के बाद एक, सभी गोलियाँ हलचल करने लगेगी तथा अन्तिम गोली ट्यूब से निकलकर स्वतंत्र हाे जाती है।